लोकगीत में निर्गुण काव्य का गायन

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Title

लोकगीत में निर्गुण काव्य का गायन
Lōkgīt Mēṅ Nirguṇ Kāvya kā Gāyan

Publisher

The Department of Indian Music
School of Fine & Performing Arts
University of Madras, Chepauk
Chennai, Tamil Nadu, India - 600 005

Date

December 2022

Format

Portable Document Format

Language

Hindi

Type

Article

Alternative Title

Lokgit Mein Nirgun Kavya ka Gayan

Abstract

भारतीय मनुष्यों ने काव्य और संगीत को पाश्चात्य दृष्टि बिन्दु की भाँति केवल अभिव्यंजना का ही माध्यम न मानकर आत्म साक्षात्कार  के महान सम्बल रूप में स्वीकारा है। यही कारण है कि हमारे यहाँ ललित कलाओं में काव्य और संगीत का विशिष्ट स्थान है। वैदिक काल से आधुनिक काल तक के साहित्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शब्द संगीत के योग से ही रमणीय अर्थ की व्यंजना करने में सक्षम होता है।

कबीर, रैदास, गुरूनानक, ददूदयाल, धर्मदास, गरीबदास इत्यादि निर्गुण कवियों की काव्य रूपी मुक्ता यदि संगीत के धागे में न पिरोये होते तो साहित्य दृष्टि से कितनी उच्च होने पर भी जनमानस के हृदय हार नहीं बन पाते। लोक संगीत एवं निर्गुण काव्य का परस्पर अटूट संबंध है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। लोक संगीत का अर्थ है जन साधारण का संगीत। लोक संगीत जन-जीवन की उल्लासमय अभिव्यकित है एवं निर्गुण काव्य का तात्पर्य है उस काव्य से है जिसमें नामदेव, कबीर इत्यादि संत कवियों ने ईश्वर के निराकार रूप की भक्तियुक्त रचनाओं मोक्ष प्राप्ति एवं जनकल्याण हेतु रचा।

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7 .लोकगीत में निर्गुण काव्य का गायन.docx - Google Docs.pdf

Citation

डॉ. सुरेन्द्र नाथ सोरेन, “लोकगीत में निर्गुण काव्य का गायन,” Smṛti - A Bi-Annual Peer Reviewed Journal on Fine & Performing Arts , accessed April 27, 2024, https://smrti.omeka.net/items/show/46.